ग्राम नाहरमऊ में रक्षाबंधन के पर्व पर 23 अगस्त 2021 मंदिर में कजली कार्यक्रम एवं गरबा या आम बोलचाल की भाषा में शेरों कहते हैं
ग्राम नाहरमऊ में रक्षाबंधन के पर्व पर 23 अगस्त 2021सुबह के 11:20 से मंदिर में कजली कार्यक्रम एवं गरबा या आम बोलचाल की भाषा में शेरों कहते हैं जो कि बुंदेलखंड में बहुत ही अच्छा माना जाता है ग्राम नाहर मऊ में ऐसी बहुत अच्छी तरीके से मनाया गया
ग्राम नाहरमऊ में रक्षाबंधन के पर्व पर 23 अगस्त 2021सुबह के 11:20 से मंदिर में कजली कार्यक्रम एवं गरबा या आम बोलचाल की भाषा में शेरों कहते हैं जो कि बुंदेलखंड में बहुत ही अच्छा माना जाता है ग्राम नाहर मऊ में ऐसी बहुत अच्छी तरीके से मनाया गया का एवं शेरो खेलने का भी एक बड़ा ही उत्साह है लोगों को देखने मैं मिलता है और यह खेल शाम के करीब 5:00 बजे तक खेला जाता है यह गरबा यानी ऐसी आम बोलचाल की भाषा में शेरों भी कहते हैं , श्री राधा कृष्ण मंदिर से लेते शेरों खेलते हुए लोग गांव की मध्य में और ग्राम की मध्य में बने हुए कुएं के पास एक अच्छाई सुंदर मैदान है वह कलियों को रखा जाता है मंदिर से लाई हुई कर लिया रहती हैं कुछ 9 दिन के करीब पहले बोली जाती हैं, और काजलियो का एक विशेष महत्व है हमने अनेक गणमान्य नागरिकों से चर्चा की और जाना की कजलियां का महत्व क्या है तो उनके द्वारा मालूम चला उन्होंने बताया की कजलियां एक प्राचीन परंपरा है एवं सुख दुख में एक दूसरे के साथ खड़े होने का प्रतीक है और कजलियां एक दूसरे को देख कर उसकी कजलियां थोड़ी बहुत लेकर उनके सुख-दुख को बांटते हैं लोग एक दूसरे को देते हैं लेते हैं और सम्मिलित रूप से एकता के सूत्र मैं बांध है एक दूसरे की आत्माओं से रहता है और यह परंपराएं हमें एक दूसरे की सुख दुख में प्रदान करती है जो कि 9 युवा पीढ़ी में पीढ़ी में बहुत ही अरे नव युवा पीढ़ी में सुधार का काम करती है जिससे कोई नव युवा पीढ़ी एक दूसरे से जलने भूलने किसी के बारे में गलत सोच विचार रखने की छोड़ सकता है क्योंकि हम जानते हैं कि देखते हैं वैसा ही करते हैं बुजुर्गों के द्वारा नहीं हमें सीख मिलती है कि हम बराबरी से रहे और एक दूसरे के साथ सुख दुख में निभाए मैं कमलेश विश्वकर्मा पत्रकार नाहरमऊ गणमान्य नागरिक
(1). श्रीमान रमेश दुबे जी से उनका परिचय एवं उनसे उनके विचार जाने तो उन्होंने बताया कि बहुत ही प्राचीन परंपरा है और इस परंपरा से हमें बहुत ही अच्छी सीख मिलती है और इसके साथ-साथ बूढ़े वाले भी इसमें खेलने लगते हैं कौन है लगती है नाचने गाने लगते हैं और शरीर की तंदुरुस्ती रहती है और यह इतना मनमोहक खेल एवं रक्षाबंधन का यह कजली तोड़ना होता है क्योंकि हरियाली चारो और होती है और एक मन में बहुत ही या उत्साह बना रहता है और लोग एक दूसरे से मिलते हैं कुछ समय के लिए ही सही अपने दुख दर्द को भूल एक दूसरे के साथ खड़े होते हैं फिर हमने ग्राम के गणमान्य नागरिक
(2).श्रीमान प्रवीण श्रीवास्तव जी जो कि गांव में गिने चुने लोगों में उनका नाम आता है कहे जाते हैं उनके विचार हमने लिए के बहुत ही प्राचीन परंपरा है और हम लगभग अपने जन्म से ही इसे अपने होता हुआ देख रहे हैं बड़े बुजुर्ग इसको ऐसे ही तरह तरीके से खेलती आ रही हैं और एक दूसरे के मन में देश की भावना रखते हुए गरबा खेलती हुई दुश्मनी को बुलाकर एक दूसरे इसके पश्चात
(3).प्रवीण श्रीवास्तव के चाचा जी के विचार सुने बताया भोपाल से आए हैं और हम हर साल यहां पर इस कार्यक्रम को देखने या रक्षाबंधन के समय पर आते हैं और इस कार्यक्रम को बहुत ही उत्सुकता से देखते हैं या देखने के लिए उत्सुक रहते हैं और बहुत ही मनमोहक कर देने वाला यह गरबा लगता है,
तत्पश्चात हमनेश्रीमान मनोज तिवारी जी से विचार जाने
(4).माध्यमिक शाला नाहरमऊ अध्यापक महोदय श्रीमान मनोज कुमार तिवारी जी से अपने विचार सुने और उन्होंने बताया वह भी इसी गांव के हैं ग्राम नाहरमऊ में ही उनका जन्म हुआ अध्ययन हुआ और यहीं पर उनकी क्योंकि अध्यापक के पद पर नियुक्ति उन्होंने कहा रुको हम शुरू से ही देखते आ रहे हैं बुजुर्गों के द्वारा खेला जाता है एवं कजली तोड़कर एक दूसरे को देते हैं तत्पश्चात बड़े बुजुर्गों से आशीर्वाद लेते हैं इस प्रकार फोटो को बड़ों का सम्मान करना भी मिलता रहता है इस ज्ञान का बहुत ही क्योंकि जो विद्यालय में नहीं सिखाया सिखाया पाती वह यहां पर एक दूसरे को मिलकर एक दूसरे से सम्मान देकर नव युवा पीढ़ी सीख दी जाती है और उसके पश्चात उससे भी छोटी पीढ़ी उससे भी छोटी पीढ़ी और छोटे बच्चे भी देखते हैं और अनुशासन में रहते हैं इतना कहकर ने अपने शब्दों का समापन किया