जो वैक्सीन पहले से लगी है क्या उसका बूस्टर डोज लगता है? जानें बूस्टर डोज से जुड़े ऐसे 5 सवालों के जवाब
- तेजी से फैल रहे कोरोना के नए ओमिक्रॉन वैरिएंट से बचने के लिए भारत में भी बूस्टर डोज लगाया जा सकता है।
तेजी से फैल रहे कोरोना के नए ओमिक्रॉन वैरिएंट से बचने के लिए भारत में भी बूस्टर डोज लगाया जा सकता है। बता दें, दुनिया के कई देशों में पहले से ही कोरोना वैक्सीन की बूस्टर डोज दी जा रही है। दरअसल, बूस्टर डोज वैक्सीन की तीसरी खुराक को कहते हैं। बूस्टर डोज को लेकर लोगों के मन में कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। महामारी से बचे रहने के लिए लोगों को इन सवालों के सही जवाब पता होना बेहद जरूरी है। अगर बूस्टर डोज को लेकर आपके मन में कोई सवाल है तो आइए इससे जुड़े ऐसे ही 5 सवालों के सही जवाब।
बूस्टर डोज से जुड़े 5 सवालों के सही जवाब-
1. बूस्टर डोज क्या है
बूस्टर डोज उन लोगों को दी जाती है जो पहले कोरोना टीके की दोनों खुराक ले चुके हैं। क्योंकि दोनों खुराक लगवाने के तीन से छह महीने के अंदर प्रतिरक्षा में कमी हो जाती है। लेकिन यदि आपके पास तीसरी खुराक या बूस्टर डोज है तो यह प्रतिरक्षा को बढ़ाने में मदद करती है और गंभीर संक्रमण की या अस्पताल में भर्ती होने की संभावना कम हो जाती है।
2. इसे लेकर शोध के नतीजे क्या कहते हैं
सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि जिन लोगों में दोनों खुराक लेने के बाद भी पर्याप्त मात्रा में एंटीबॉडी नहीं बनी है उन्हें तीसरी खुराक के रूप में बूस्टर डोज देने की आवश्यकता हो सकती है। माना जाता है कि बुजुर्गों पर टीका कम प्रभावी है। क्योंकि दोनों टीका लगवाने के बाद भी वायरस के खिलाफ कम एंटीबॉडी बनती है। इनमें वे लोग शामिल हैं जो कैंसर से पीड़ित हैं या जिन्होंने कोई अंग प्रत्यारोपित करा रखा है।
3. किन देशों में बूस्टर डोज की अनुमति दी गई है
इजरायल जैसे देश कोरोना के खिलाफ जंग में अपने बूस्टर अभियान के साथ आगे बढ़े हैं। अमेरिका और यूरोप भी इजरायल के नक्शेकदम पर चल रहे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि कई अध्ययनों में कहा गया है कि छह महीने बाद टीकों से प्रतिरक्षा में गिरावट हो रही है। साथ ही ओमीक्रोन और डेल्टा जैसे वेरिएंट के काफी संक्रामक होने के चलते भी इसकी जरूरत महसूस की जा रही है।
4. क्या जो वैक्सीन पहले से लगी है उसी का बूस्टर डोज लगता है
कई देश मिक्स एंड मैच टीकों का उपयोग कर रहे हैं। साथ ही कई कंपनियां यूनिवर्सल बूस्टर टीका बना रही हैं। जैसे रूस में एक खुराक वाली स्पूतनिक लाइट का उपयोग बूस्टर डोज के रूप में हो रहा है। एस्ट्राजेनेका-ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की वैक्सीन के दो शॉट्स के बाद बूस्टर के रूप में इसकी प्रभावकारिता का मूल्यांकन करने के लिए अध्ययन जारी है।
5. इस पर विश्व स्वास्थ्य संगठन का क्या कहना है
डब्ल्यूएचओ इस साल बूस्टर डोज देने के पक्ष में नहीं था। डब्ल्यूएचओ का कहना है कि इससे दुनिया भर में वैक्सीन की किल्लत हो सकती है। साथ ही गरीब देशों पर मार पड़ सकती है। क्योंकि कोरोना की बूस्टर डोज से महामारी घटने के बजाय बढ़ सकती है। वायरस और ज्यादा तेजी से फैलेगा। वायरस का म्यूटेशन काफी ज्यादा होगा। वैक्सीन उन देशों को भी मिलनी चाहिए जिसे अभी तक नहीं मिली है। हालांकि, डब्ल्यूएचओ का कहना है कि ज्यादा जोखिम वाले लोगों को बूस्टर खुराक दी जा सकती है।