भारत के इन गांवों में 130 रुपये किलो नमक खरीद रहे हैं ग्रामीण, चीनी 150, सरसों तेल 275, आटा 150 और प्याज बिक रहा 125 रुपये किलो
- भारत-चीन सीमा पर बसे गांवों में महंगाई ने सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। बुर्फू, लास्पा और रालम ग्रामसभाओं में जरूरी सामान छह से आठ गुना तक महंगा बिक रहा है। मुनस्यारी में 20 रुपये किलो मिल रहा नमक सीमा के गांवों में 130 रुपये किलो के भाव खरीदने को लोग मजबूर हैं।
भारत-चीन सीमा पर बसे गांवों में महंगाई ने सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। बुर्फू, लास्पा और रालम ग्रामसभाओं में जरूरी सामान छह से आठ गुना तक महंगा बिक रहा है। मुनस्यारी में 20 रुपये किलो मिल रहा नमक सीमा के गांवों में 130 रुपये किलो के भाव खरीदने को लोग मजबूर हैं। यही हाल रोज इस्तेमाल होने वाले अन्य जरूरी सामान का भी है। प्याज 125 रुपये तो सरसों तेल का दाम 275 रुपये किलो पहुंच गया है। चीनी 150 रुपये तो दाल 200 रुपये किलो बिक रही है।
भारत-चीन सीमा पर हर साल मार्च से नवंबर तक तीन ग्रामसभाओं के 13 से ज्यादा तोक (छोटे-छोटे गांव) के लोग माइग्रेशन करते हैं। इस दौरान सेना की कई चौकियों से भी सैनिक नीचे आ जाते हैं इसलिए ये सीमा के प्रहरी भी हैं। खराब रास्ते और कोरोना के कारण इस बार माइग्रेशन पर आने ग्रामीण महंगाई से त्रस्त हैं। सड़क से 52 से 73 किमी तक दूरी बसे ग्रामीणों का कहना है यदि सरकार उनके लिए उचित इंतजाम नहीं कर सकती तो आगे माइग्रेशन मुश्किल होगा।
तीन साल से बढ़ती जा रहीं कीमतें (दाम: रुपये प्रति किलोग्राम में)
सामान | साल 2019 | 2020 | 2021 |
नमक | 60 | 70 | 130 |
दाल मलका | 80 | 90 | 200 |
मोटा चावल | 50 | 80 | 150 |
चीनी | 70 | 90 | 150 |
तेल सरसों | 90 | 110 | 275 |
आटा | 50 | 70 | 150 |
प्याज | 60 | 90 | 125 |
(स्रोत: ये कीमतें स्थानीय लोगों और ग्राम प्रधानों ने बताई हैं।)
महंगाई बढ़ने के मुख्य तीन कारण
- 1: पैदल रास्ते टूट चुके हैं। इस कारण सभी सामान घोड़े और खच्चर वालों से खरीदना पड़ता है। पहले लोग खुद पैदल भी सामान लाते थे।
- 2: कोरोना के बाद मजदूरों ने ढुलाई भाड़ा दोगुना कर दिया है। साल 2019 में प्रति किलो 40 से 50 रुपये भाड़ा था। अब ये 80 से 120 रुपये तक है।
- 3: कोरोना के कारण नेपाल से आने वाले मजदूरों की संख्या काफी कम हो गई। नेपाल मूल के मजदूर सस्ते में मिल जाते थे।
मिलम के ग्राम प्रधान गोकर्ण सिंह पांगती कहते हैं कि बाजार में 20 रुपये किलो मिलने वाला नमक यहां के गांवों में 130 रुपये तक पहुंच गया है। कोरोना से पहले भी महंगाई थी लेकिन नमक 50 से 60 रुपये तक मिल जाता था। ऐसे में यहां रहना मुश्किल है। वहीं, मुनस्यारी के सप्लायर कुंदन सिंह बताते हैं, ' 54 सालों से आईटीबीपी और माइग्रेशन गांवों में सप्लाई करता हूं। ऐसी महंगाई पहली बार देखी। रास्ते खराब होने के कारण घोड़े-खच्चरों का ढुलाई भाड़ा बढ़ा है। नेपाली मजदूर न आने से भी कीमतें बढ़ी हैं।
पिथौरागढ़ की जिला पूर्ति अधिकारी चित्रा रौतेला, कहमी हैं कि माइग्रेशन गांवों को जोड़ने वाले रास्ते बंद होने से निश्चित तौर पर परेशानी बढ़ी है। ढुलाई भाड़ा बढ़ने से जरूरी सामान की कीमत में उछाल आना स्वाभाविक है। इस मामले में डीएम से चर्चा कर आवश्यक कदम उठाए जाएंगे।