कोरोना महामारी की तीसरी लहर की तैयारियों के लिए 4 बातें अहम, जानें क्या हैं ये
- भारत में कोरोना की दूसरी लहर नौ मई 2021 को चरम पर थी। उस दौरान COVID-19 वायरस से संक्रमित नए मरीजों का हफ्तेभर का औसत 391819 पर पहुंच गया था।
भारत में कोरोना की दूसरी लहर नौ मई 2021 को चरम पर थी। उस दौरान COVID-19 वायरस से संक्रमित नए मरीजों का हफ्तेभर का औसत 391819 पर पहुंच गया था। हालांकि, मौजूदा समय में रोजाना दर्ज होने वाले नए मामलों का सात दिन का औसत घटकर 85807 रह गया है। दूसरी लहर में मची तबाही ने भारत के संवेदनशील स्वास्थ्य ढांचे की पोल खोल दी थी। ऐसे में स्पष्ट है कि तीसरी लहर के लिए ज्यादा बेहतर और मजबूत तैयारी करने की जरूरत है। विशेषज्ञों के मुताबिक टीकाकरण के अलावा ये चार चीजें तीसरी लहर का कहर घटाने में मददगार साबित हो सकती हैं-
1. जांच सुविधा बढ़ाई जाए: कोरोना की रोकथाम के लिए समय रहते संक्रमितों की पहचान कर उन्हें पृथक करना बेहद जरूरी है। संक्रमितों की समय पर पहचान जांच केंद्रों तक उनकी पहुंच पर निर्भर करती है। आंकड़े दर्शाते हैं कि सर्दी-जुकाम, बुखार, सांस लेने में तकलीफ सहित अन्य कोविड-19 लक्षणों से जूझने वाले किसी संदिग्ध के टेस्ट कराने की संभावना तब कई गुना ज्यादा बढ़ जाती है, जब जांच केंद्र उसके घर के एक से पांच किलोमीटर के दायरे में हो। जांच शुल्क भी टेस्ट के लिए आगे आने की दर तय करने में अहम भूमिका निभाता है, खासकर गरीबों और वंचितों के मामले में।
2. लोगों को जागरुक किया जाए: राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने 2017-18 में एक सर्वे कर यह जानने का प्रयास किया कि बीमार पड़ने पर लोग चिकित्सकीय सलाह लेने से क्यों बचते हैं। उन्होंने पाया कि आर्थिक तंगी इसकी मुख्य वजह है। मासिक प्रति व्यक्ति खर्च के आधार पर सबसे गरीब माने जाने वाले 20 प्रतिशत लोगों के सबसे अमीर 20 प्रतिशत आबादी के मुकाबले डॉक्टर का रुख करने की संभावना तीन गुना कम रहती है। स्वास्थ्य केंद्रों का पहुंच से काफी दूर होना और लक्षणों को ज्यादा गंभीर नहीं मानने की भूल करना भी इलाज के लिए आगे न आने की बड़ी वजहों में शुमार है
3. आर्थिक प्रभाव को समझना जरूरी: एनएसओ के सर्वे से अंदाजा लगाया जा सकता है कि कोविड-19 का बेहद खर्चीला इलाज लोगों की माली हालत को किस तरह हिला सकता है। उसमें पाया गया था कि 81 फीसदी मामले (प्रसव को छोड़), जिनमें मरीजों को भर्ती कराना जरूरी था, उनमें अस्पताल का बिल परिवार की आय या बचत से चुकाया गया। वहीं, 11 फीसदी मामलों में परिजनों को कर्ज लेने की जरूरत पड़ी, जबकि 3.5 प्रतिशत केस में दोस्त-रिश्तेदार मदद को आगे आए। 0.4 फीसदी मामले ऐसे थे, जिनमें संपत्ति बेचनी पड़ी। चूंकि, कोविड के गंभीर मरीजों का इलाज कहीं ज्यादा खर्चीला हो सकता है, लिहाजा उसका आर्थिक प्रभाव भी और अधिक होगा।
4. स्वास्थ्य बीमा का दायरा बढ़े: एनएसओ के सर्वे पर गौर करें तो भारत में अस्पतालों में भर्ती होने वाले तीन-चौथाई मरीज ऐसे थे, जिनका स्वास्थ्य बीमा नहीं था। सबसे अमीर 20 फीसदी लोगों में बिना स्वास्थ्य बीमा वाले लोगों के भर्ती होने की दर 68 फीसदी थी। वहीं, सबसे गरीब 20 प्रतिशत आबादी की बात करें तो यह 85.5 प्रतिशत दर्ज की गई थी। जिन मरीजों ने स्वास्थ्य बीमा करवा रखा था, उनमें से भी ज्यादातर मामलों में इलाज का पूरा खर्च बीमित राशि से कहीं अधिक था। यही नहीं, कुल व्यय की बात करें, जिसमें अस्पताल आने-जाने का किराया, तीमारदारों के रहने-खाने का खर्च, आदि शामिल है, तो आर्थिक बोझ और भी ज्यादा हो जाता है।