कोविड ने हर चार में से तीन युवाओं के दिमाग को किया प्रभावित, शोध में दावा
- कोरोना संक्रमण के कारण हर चार में से तीन लोगों की दिमागी क्षमता काफी प्रभावित हुई है।
कोरोना संक्रमण के कारण हर चार में से तीन लोगों की दिमागी क्षमता काफी प्रभावित हुई है। महामारी से मुक्त होने के दो माह बाद तक 77 फीसदी से अधिक लोगों को मानसिक समस्याओं से जूझना पड़ रहा है, जिनमें 50 साल से कम उम्र के युवाओं की संख्या सर्वाधिक है। यूरोपियन एकेडमी ऑफ न्यूरोलॉजी के 7वें कांग्रेस में पेश एक ताजा शोध रिपोर्ट में यह दावा किया गया है। मिलान स्थित यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और इस शोध के प्रमुख मासिमो फिलिप्पि ने कहा-हमारा अध्ययन इस बात की पुष्टि करता है कि मानसिक और व्यवहारगत समस्याओं का कोरोना संक्रमण से सीधा संबंध है, कोरोना से उबरने के बाद भी ये समस्याएं कई महीनों तक रहती हैं।डॉ. माट्टिया पोजाटो के मुताबिक शोध में पाया गया कि ठीक होने के पांच-दस महीने बाद भी 53 में से 77.4 फीसदी लोगों को कम से कम एक तरह के मनोविकार का सामना करना पड़ा, जबकि 46.3 फीसदी लोगों में तीन तरह की दिमागी बीमारी के लक्षण दिखे। शोध के मुताबिक ठीक होने के बाद 90 फीसदी लोगों में पोस्ट कोविड के लक्षण दिखते हैं, जिसमें से ज्यादातर का संबंध दिमाग से होता है।
सोचने-समझने की क्षमता प्रभावित :
रिपोर्ट में सबसे चौंकाने वाला खुलासा यह हुआ कि कोरोना संक्रमण के बाद व्यक्ति का एक्जीक्यूटिक फंक्शन (याददाश्त और सोचने-समझने की क्षमता) बहुत ज्यादा प्रभावित होती है। इससे लोगों के लिए ध्यान केंद्रित करना, योजना बनाना, लचीले ढंग से सोचना और चीजों को याद रखना मुश्किल हो सकता है। कोरोना से ठीक होने वाले 16 फीसदी लोगों की सोचने-समझने और याददाश्त की समस्या प्रभावित दिखी, छह फीसदी लोगों की याददाश्त क्षमता गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हुई।
गहाई-दूरी और रंग बोध की समस्या:
कोरोना से उबरने के बाद दो महीने तक लोगों में दूरी और गहराई संबंधी बोध और सूचना एकत्र करके उसे समझने की क्षमता में कमी देखी गई। कोरोना से ठीक होने के बाद हर पांच में से एक व्यक्ति में पोस्ट-ट्रौमेटक तनाव बीमारी (पीटीएसडी) और 16 फीसदी लोगों में अवसाद देखने को मिला। शोध के मुताबिक कोरोना से उबरने के दो महीने बाद लोगों का एमआरआई स्कैन किया गया तो पाया गया कि 50 फीसदी लोग संज्ञानात्मक समस्या से जूझ रहे हैं। इसके अलावा छह फीसदी लोगों को दूरी, गहराई और रंग का अंदाजा लगाने में मुश्किलों का सामना करना पड़ा। 25 फीसदी लोगों में ये सभी लक्षण देखने को मिले। एक अतिरिक्त सर्वेक्षण में पाया गया कि कोरोना से उबरने के 10 महीने बाद भी अवसाद की समस्या बरकरार रही।
मनोविकार के आम लक्षण :
कोरोना से ठीक हुए लोगों में अनिद्रा की समस्या सबसे आम है। अध्ययन में पाया गया कि 65.9 फीसदी लोग अनिद्रा और 46.3 फीसदी लोग दिनभर ऊंघने की समस्या से पीड़ित हैं। इसके अलावा चलने-फिरने में दिक्कत, स्वाद-गंध की क्षमता में कमी और सिर दर्द भी शामिल है।
वायरस दिमाग पर हमला कर रोक देता है सांस:
अब तक यही समझा जाता था कि कोरोना के फेफड़ों पर हमले से मरीज की सांस थम जाती है। लेकिन नए शोध से पता चला कि कोरोना वायरस दिमाग पर भी अटैक करके सांस लेने के तंत्र को ध्वस्त कर देता है, जिससे मौत हो जाती है। डॉ. बोकिस ने पाया कि कोरोना वायरस ब्रेन की स्टेम खासकर मेडुलर स्तर तक पहुंचकर दिमागी क्षमता प्रभावित करते हैं।
दिमाग पर असर का कारण:
महामारी से जान गंवाने वाले मरीजों के पोस्टमार्टम में पाया गया कि कोरोना संक्रमण से उनका तंत्रिका तंत्र बहुत अधिक क्षतिग्रस्त हो चुका था। डॉ. टॉमासो बोकिस ने अपने शोध में पाया कि मस्तिष्क में बड़ी संख्या में छोटे-छोटे स्टार्च निर्मित दाने मिले, जिन्हें कॉर्पोरा एमाइलेसिया कहा जाता है। ये दाने ही तंत्रिका तंत्र और अन्य दिमागी बीमारियों के कारण होते हैं। सर्वेक्षण में पाया गया कि कोरोना संक्रमण के दौरान अस्पताल में भर्ती जिन लोगों को सांस लेने में मुश्किलों का सामना करना पड़ा, उनकी याददाश्त और सोचने-समझने की क्षमता सबसे कम पाई गई। यानी ऐसे मरीजों की मानसिक क्षमता पर सबसे बुरा असर पड़ा है।