उत्तराखंड में BSP की कम सक्रियता से कांग्रेस गदगद, तराई वाले क्षेत्र में मिल सकता है फायदा
Uttarkashi, Uttarakhand, India
- पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी पारा बढ़ता जा रहा है।
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी पारा बढ़ता जा रहा है। चुनाव तिथियों के औपचारिक ऐलान से पहले सभी पार्टियां ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचने की कोशिश कर रही है। मगर, बहुजन समाज पार्टी अभी तक खुलकर मैदान में नहीं उतरी है। उत्तराखंड में बसपा की कम सक्रियता में कांग्रेस अपना फायदा तलाश रही है। क्योंकि, बसपा राज्य के तराई वाले क्षेत्र में कांग्रेस की मुश्किल बढ़ाती रही है।
उत्तराखंड में कांग्रेस और भाजपा के बाद बसपा तीसरी ताकत रही है। तराई क्षेत्र में दलित और अल्पसंख्यक मतदाताओं की तादाद अच्छी खासी है। ऐसे में कांग्रेस, बसपा और सपा सभी इस क्षेत्र में अपनी किस्मत आजमाते रहे हैं। इन दलों की आपसी लड़ाई का फायदा भाजपा को भी मिलता रहा है। मगर, इस बार तस्वीर कुछ अलग है। चुनावी सरगर्मियां बढ़ने के बावजूद बसपा अभी तक खुलकर मैदान में नहीं उतरी है।
हरिद्वार और उधमसिंह नगर की 16 विधानसभा सीट पर बसपा का खासा जनाधार रहा है। वर्ष 2002 के चुनाव में बसपा तराई क्षेत्र में सात और 2007 में आठ सीट जीत चुकी है। हालांकि, 2012 के चुनाव में बसपा को यहां सिर्फ तीन सीट मिली थी, पर उसका वोट प्रतिशत बढ़कर 12 फीसदी तक पहुंच गया था। पर 2017 में यह घटकर सात प्रतिशत रह गया। इसके बाद पार्टी ने संगठन में भी कई बदलाव किए हैं।
प्रदेश कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक, बसपा के बहुत सक्रिय नहीं होने का पार्टी को फायदा मिल सकता है। क्योंकि, ऐसी स्थिति में कांग्रेस और भाजपा का सीधा मुकाबला होने की संभावना बन सकती है। हरिद्वार और उधमसिंह नगर में दलित और अल्पसंख्यक मतदाताओं की संख्या काफी है, ऐसे में पार्टी को बढ़त मिल सकती है।
तराई क्षेत्र में बसपा का असर कम करने के लिए कांग्रेस पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी की तर्ज पर दलित मुख्यमंत्री का जिक्र कर चुकी है। उत्तराखंड में अनुसूचित जाति की आबादी करीब 18 फीसदी है। इसमें ज्यादातर तराई क्षेत्र में है। पार्टी रणनीतिकार मानते हैं कि चन्नी को पंजाब का मुख्यमंत्री बनाने के बाद दलितों का कांग्रेस पर विश्वास बढ़ा है और विधानसभा चुनाव में इसका फायदा मिलेगा।
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