जालंधर के इस गांव ने दिए हैं हॉकी की मेडल विजेता टीम के तीन सितारे, कप्तान मनप्रीत भी यहीं के
- ओलंपिक में 41 साल बाद मेडल हासिल करने वाली पुरुष हॉकी टीम को देश ने सिर आंखों पर बिठा रखा है।
ओलंपिक में 41 साल बाद मेडल हासिल करने वाली पुरुष हॉकी टीम को देश ने सिर आंखों पर बिठा रखा है। कल तक गुमनाम से खिलाड़ी अब स्टार में तब्दील हो गए हैं और हर कोई उनके बारे में जानना चाहता है। आइए बताते हैं, हॉकी की टीम इंडिया के ऐसे ही तीन खिलाड़ियों के बारे में जो एक ही गांव के हैं। इनमें टीम के कप्तान मनप्रीत सिंह भी शामिल हैं। उनके अलावा जालंधर के मीठापुर गांव से वरुण और हार्दिक सिंह भी मेडल विजेता टीम का हिस्सा हैं। बेटों की जीत पर गांव में जश्न का माहौल है और हर कोई मनप्रीत, वरुण और हार्दिक की वापसी पर हार्दिक स्वागत को उत्सुक है।
कांस्य पदक विजेता टीम के कप्तान मनप्रीत सिंह की मनजीत कौर का कहना कि मेरे पास बेटे की टीम के जीतने पर खुशी जाहिर करने के लिए शब्द नहीं हैं। मनजीत कौर ने कहा कि वे अपने घर पर अंखड साहिब पाठ कराएंगी। मनप्रीत की मां खुशी के आंसू रोक नहीं पा रही थीं और उनके बचपन के दिनों की याद करते हुए कहा कि वह अकसर अपना दिन हॉकी में ही गुजारता था। यही नहीं हर मां की तरह उनकी भी चिंता थी कि पूरे दिन हॉकी में ही बिजी रहने वाला उनका बेटा बड़ा होकर कैसे गुजारा करेगा। लेकिन आज बेटे के खेल पर मां को फख्र है।
मनप्रीत की मां ने बताया कि मुझे भले ही उसके भविष्य की चिंता थी, लेकिन उसे ट्रेनिंग देने वाले अकसर कहते थे कि वह एक दिन अंतरराष्ट्रीय लेवल पर खेलेगा। वह कहते थे कि एक दिन मैं बेटे को टीवी पर देखूंगी। आज वह दिन आ गया है और मैं उसे ओलंपिक मेडल जीतते देख रही हूं। इससे ज्यादा मुझे क्या चाहिए। टीम इंडिया के एक और स्टार प्लेयर हार्दिक सिंह भी इसी गांव के रहने वाले हैं। जर्मनी के खिलाफ जोरदार गोल दागने वाले हार्दिक ने मैच के बाद अपने परिवार में फोन किया तो छोटे भाई का बेहद मासूम सा सवाल था कि क्या वह अपनी कार पर अब ओलंपिक के छल्ले छपवा सकता है। इस पर हार्दिक ने कहा कि इस पर बाद में बात करेंगे।
टीम इंडिया के एक और सितारे वरुण के घर पर भी मीडिया और प्रशंसकों का जमावड़ा है। ट्रक ड्राइवर ब्रह्मनंद के बेटे वरुण की सफलता मेहनत की कहानी है। कैसे कोई लगन के साथ बिना ज्यादा संसाधनों के भी देश का नाम रोशन कर सकता है, वरुण इसकी बानगी हैं। पिता ब्रह्मनंद ने कहा, 'मैं मीडिया और गांव के लोगों के साथ उत्सव मना रहा हूं। यहां ढोल बज रहा है और लोग नाच रहे हैं। मैंने इस दिन की कल्पना ही नहीं की थी कि जिंदगी में ऐसा भी वक्त आएगा।'