दुर्गा विसर्जन 2021: इस दिन क्यों खेला जाता है ‘सिन्दूर खेला’? जानें महत्व और मुहूर्त
- नवरात्रि का यह पावन त्यौहार दुर्गा विसर्जन के साथ समाप्त हो जाता है।
नवरात्रि का यह पावन त्यौहार दुर्गा विसर्जन के साथ समाप्त हो जाता है। दुर्गा विसर्जन के बाद ही बहुत से लोग अपने नवरात्रि व्रत की पारणा करते हैं और इसके बाद ही विजयादशमी का त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन के बारे में ऐसी मान्यता है कि, जहां एक तरफ प्रभु श्री राम ने रावण का वध किया था वहीं मां दुर्गा ने इसी दिन महिषासुर नामक असुर का वध किया था।दुर्गा विसर्जन विशेष अपने इस आर्टिकल में आज हम जानेंगे दुर्गा विसर्जन का शुभ मुहूर्त क्या है? इसका महत्व क्या होता है? इसके अलावा जानेंगे दुर्गा विसर्जन के दिन कौन-कौन सी परंपराएं निभाई जाती हैं और साथ ही जानेंगे इस दिन से जुड़े कुछ नियम और महत्वपूर्ण सावधानियां जिन्हें जिनका पालन करना अनिवार्य होता है।
2021 में कब है दुर्गा विसर्जन (Durga Visarjan 2021)
15 अक्टूबर, 2021
दिन: शुक्रवार
दुर्गा विसर्जन मुहूर्त
दुर्गा विसर्जन समय :06:21:33 से 08:39:39 तक
अवधि :2 घंटे 18 मिनट
इस शुभ मुहूर्त में करें दुर्गा विसर्जन
इस बात का हमेशा ध्यान रखें कि दुर्गा विसर्जन नवमी तिथि के दिन कभी नहीं किया जाना चाहिए। नवरात्रि के 9 दिन मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों को समर्पित होते हैं। ऐसे में नौवां दिन मां दुर्गा के आखिरी स्वरूप सिद्धिदात्री देवी को समर्पित होता है। हालांकि कई लोग इसी दिन दुर्गा विसर्जन कर देते हैं जिससे, नवरात्रि के दौरान मां की पूजा अधूरी रह जाती है। इसलिए हमेशा दसवें दिन यानि कि, दशहरे के दिन ही मां दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन किया जाना चाहिए।
इसके अलावा इस बात का भी विशेष ध्यान रखें कि दुर्गा विसर्जन प्रातः काल या अपराह्न काल में विजय दशमी तिथि लगने पर शुरू कर दिया जाता है इसीलिए जितना मुमकिन हो प्रातःकाल में या फिर अपराह्न काल में मां दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन करना शुभ माना जाता है। यूं तो कई जगहों पर मां दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन प्रातःकाल में ही कर दिया जाता है लेकिन अगर श्रवण नक्षत्र और दशमी तिथि अपराह्न काल में एक साथ बन रही हो तो यह समय मां दुर्गा की प्रतिमा के विसर्जन के लिए सर्वश्रेष्ठ होता है।
दुर्गा विसर्जन विधि
आगे बढ़ने से पहले जान लेते हैं दुर्गा विसर्जन की सही विधि क्या होती है जिसे अपनाकर आप भी मां की कृपा अपने जीवन में हासिल कर सकते हैं।
- दशमी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद साफ कपड़े पहनें।
- इसके बाद शुभ मुहूर्त में एक फूल और कुछ चावल के दाने हाथ में लेकर संकल्प लें।
- विसर्जन की विधि शुरू करने से पहले मां की पूजा और उनकी आरती अवश्य उतार लें।
- इसके बाद घट यानी कलश पर रखे गए नारियल को घर में मौजूद सभी लोगों को प्रसाद के रूप में दें और खुद भी लें। इसके बाद कलश का पवित्र जल पूरे घर में छिड़क दें और इसे घर के सभी सदस्यों को प्रसाद के रूप में ग्रहण करने को भी दें।
- इसके बाद कलश में रखे सिक्कों को आप अपने गुल्लक या आप पैसे रखने वाली जगह पर भी रख सकते हैं। मान्यता है ऐसा करने से घर में बरकत आती है और धन धान्य की कभी कोई कमी नहीं रहती है।
- इसके बाद पूजा स्थल पर रखी सुपारी को भी प्रसाद के रूप में घर के लोगों को बांट दें।
- इसके बाद माता की चौकी के सिंहासन को घर के मंदिर में वापस अपनी जगह पर रख दें।
- माता को चढ़ाई गई श्रृंगार की सामग्री, साड़ी, और जेवरात, किसी महिला को दिए जा सकते हैं।
- इसके बाद भगवान गणेश की प्रतिमा को भी वापस घर के मंदिर में रख दें।
- मिठाइयां और भोग लोगों को प्रसाद के रूप में वितरित करें।
- इसके बाद चौकी और घट के ढक्कन पर रखे चावल को पक्षियों को डाल दें।
- इसके बाद मां दुर्गा की तस्वीर या प्रतिमा को, कलश में बोये गए जौ को, और पूजन सामग्री को प्रणाम करें और भगवान से पूजा के दौरान अनजाने में भी हुई किसी भी गलती की क्षमा मांगे और उन्हें अगले साल आने का आमंत्रण दें और फिर वह सम्मान पूर्वक माता को नदी या तालाब में विसर्जन कर दें। यदि आप अपने घर में माता का विसर्जन करते हैं तो इसके लिए भी यही विधि अपनानी है।
- विसर्जन करने के बाद नारियल, दक्षिणा, और चौकी के कपड़े किसी ब्राह्मण को दान में दे दें।
नवरात्रि का समापन दुर्गा विसर्जन के साथ हो जाता है। नौ दिनों तक लोग उसी मूर्ति की पूरे भक्ति भाव से पूजा करते हैं और फिर उसी मूर्ति को पानी में विसर्जित कर दिया जाता है। विसर्जन का यह साहस हमारे सनातन धर्म में ही दिखाई देता है क्योंकि सनातन धर्म इस बात को मानता है कि, रूप केवल शुरुआत है और पूर्णता सदैव निराकार होती है। अब आगे बढ़ते हैं और जान लेते हैं उन मन्त्रों के बारे में जिन्हें विसर्जन से पहले आपको हवन में शामिल अवश्य करना चाहिए।
विसर्जन से पहले इन मन्त्रों से करें हवन
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे स्वाहा।।
- मां शैलपुत्री मंत्र
ॐ ह्रीं शिवायै नम: स्वाहा।।
- मां ब्रह्मचारिणी मंत्र
ॐ ह्रीं श्री अम्बिकायै नम: स्वाहा
- मां चन्द्रघंटा मंत्र
ॐ ऐं श्रीं शक्तयै नम: स्वाहा।।
- मां कूष्मांडा मंत्र
ॐ ऐं ह्री देव्यै नम: स्वाहा।।
- मां स्कंदमाता मंत्र
ॐ ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नम: स्वाहा।।
- मां कात्यायनी मंत्र
ॐ क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नम: स्वाहा।।
- मां कालरात्रि मंत्र
ॐ क्लीं ऐं श्री कालिकायै नम: स्वाहा।।
- मां महागौरी मंत्र
ॐ श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम: स्वाहा।।
- मां सिद्धिदात्री मंत्र
ॐ ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम: स्वाहा।
माँ दुर्गा आगमन और प्रस्थान वाहन 2021
मां दुर्गा स्थापना और विसर्जन वाहन में हम जानेंगे इस वर्ष यानी 2021 में मां किस वाहन से आई हैं और किस वाहन से जाएंगी (प्रस्थान करेंगी) और साथ ही उसका महत्व क्या होता है। इस वर्ष नवरात्रि 7 अक्टूबर 2021 गुरुवार के दिन प्रारंभ हुई थी और 15 अक्टूबर 2021 शुक्रवार के दिन इसका समापन होगा।
हिंदू शास्त्रों के अनुसार हर वर्ष नवरात्रि पर मां दुर्गा के अलग-अलग वाहनों का अपना अलग महत्व होता है। शास्त्रों में वर्णित है कि जब मां दुर्गा डोली पर सवार होकर आती हैं तो राजनीतिक उथल-पुथल की स्थिति बनने लगती है। यह स्थिति सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया पर देखने को मिल सकती है। इसके अलावा मां डोली पर आ रही है यह प्राकृतिक आपदाओं के आने का संकेत हो सकता है। महामारी फैलने की संभावना बढ़ जाती है और लोगों के बीमार होने की गिनती में भी इजाफा देखने को मिल सकता है। मां के डोली पर आगमन को बहुत शुभ संकेत नहीं माना जाता लेकिन सच्चे मन से देवी दुर्गा की पूजा करने वालों पर इसका कोई असर प्रभाव नहीं पड़ता है। नवरात्रों में मां दुर्गा की पूजा करने से मां का आशीर्वाद अपने भक्तों पर हमेशा बना रहता है।
दिनशशि सूर्य गजरुढा शनिभौमै तुरंगमे।
गुरौशुक्रेच दोलायां बुधे नौकाप्रकीर्तिता॥
गजेश जलदा देवी क्षत्रभंग तुरंगमे।
नौकायां कार्यसिद्धिस्यात् दोलायों मरणधु्रवम्॥
रविवार और सोमवार को माँ भगवती हाथी पर आती हैं। शनिवार और मंगलवार को घोड़े पर आती हैं। बृहस्पतिवार और शुक्रवार को डोली पर आती हैं और बुधवार को नाव पर आती हैं।
मां दुर्गा हाथी पर आती हैं तो इससे अच्छी वर्षा होती है। घोड़े पर आती हैं तो राजाओं के बीच युद्ध होता है। नाव पर आने से सब कार्यों में सफलता मिलती है और यदि माँ डोली पर आती हैं तो इस स्थिति में अनेक वजहों के चलते बहुत से लोगों की मृत्यु होती है।
शशि सूर्य दिने यदि सा विजया महिषागमने रुज शोककरा,
शनि भौमदिने यदि सा विजया चरणायुध यानि करी विकला।
बुधशुक्र दिने यदि सा विजया गजवाहन गा शुभ वृष्टिकरा,
सुरराजगुरौ यदि सा विजया नरवाहन गा शुभ सौख्य करा॥
मां दुर्गा रविवार और सोमवार को महिषा (भैंसा) की सवारी से जाती हैं, जिससे देश में रोग और शोक की वृद्धि होने की आशंका बढ़ जाती है। शनिवार और मंगलवार को चरणायुध पर जाती हैं, जिससे विकलता की वृद्धि होती है। बुध और शुक्र दिन में भगवती हाथी पर जाती हैं। इससे वृष्टि (बारिश) वृद्धि होती है। बृहस्पति वार को भगवती मनुष्य की सवारी से जाती हैं। जो सुख और सौख्य की वृद्धि करती है।
सप्ताह में जिस दिन दुर्गा विसर्जन होता है उसे दुर्गा माता के घर वापसी के रूप में देखा जाता है। ऐसे में यदि मां दुर्गा बुधवार और शुक्रवार को वापस लौटती है ऐसा माना जाता है कि वह हाथी पर सवार होकर प्रस्थान कर रही हैं। देवी दुर्गा का हाथी पर लौटना शुभ माना जाता है ऐसे में इस वर्ष क्योंकि मां शुक्रवार को प्रस्थान कर रही है ऐसे में माना जा सकता है कि आने वाले साल में किसानों के लिए समय अनुकूल रहेगा। बंपर कटाई के लिए काफी अच्छी बारिश होगी और यह हर किसी के लिए सुख, शांति, और समृद्धि लेकर आएगा।
दुर्गा विसर्जन के दिन सिन्दूर खेला का महत्व
दुर्गा विसर्जन के दिन अलग-अलग परंपराओं का निर्वाह सालों से किया जा रहा है। इनमें से एक परंपरा है सिंदूर खेला की परंपरा। इस परंपरा के अंतर्गत विवाहित महिलाएं एक दूसरे के ऊपर सिंदूर डालकर अपने सुहाग की लंबी उम्र की कामना और अपने जीवन पर मां दुर्गा की कृपा की कामना करती हैं। इसके अलावा इस दिन महिलाएं एक-दूसरे को सिन्दूर लगाकर बधाई दी देती है और अखंड सौभाग्य की कामना करती हैं।
सिंदूर खेला की परंपरा को बंगाली समाज में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण माना गया है। ऐसा माना जाता है कि मां दुर्गा साल में एक बार अपने मायके आती है और 10 दिनों तक यहां रूकती हैं और इसी को दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है। इसके अलावा बताया जाता है कि सिंदूर खेला की यह परंपरा मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश के कुछ हिस्सों में तकरीबन 450 साल पहले की गई थी। ऐसे में सिंदूर खेला से जुड़ी मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि इस दिन इस परंपरा से प्रसन्न होकर माँ उन्हें अखंड सौभाग्य वरदान देती हैं और साथ ही उनके लिए स्वर्ग के लिए मार्ग खोल देती हैं।
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दुर्गा विसर्जन: धार्मिक महत्व
हिंदू पुराणों के अनुसार जल को ब्रह्मा माना गया है। जल को ही सृष्टि का आरंभ, मध्य, और श्रृष्टि का अंत भी माना गया है। कहते हैं यही वजह है जल में त्रिदेवों का वास भी होता है इसीलिए पूजा में पवित्रीकरण के लिए भी जल का प्रयोग किया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जल में देवी-देवताओं की प्रतिमा को विसर्जित करने के पीछे की वजह यह बताई जाती है कि, देवी-देवताओं की मूर्तियां भले ही जल में विसर्जित हो कर विलीन हो जाए लेकिन उनके प्राण सीधे परम ब्रह्म में लीन हो जाते हैं।
इसी महत्व और मान्यता के चलते दुर्गा विसर्जन में मां दुर्गा की प्रतिमाएं और गणेश विसर्जन में भगवान गणेश की मूर्तियों का विसर्जन किया जाता है।
दुर्गा विसर्जन के बाद मनाया जाता है विजयदशमी का त्यौहार
दुर्गा प्रतिमा के विसर्जन के बाद बहुत से लोग अपने व्रत का पारण करते हैं। इसके बाद अर्थात दुर्गा विसर्जन के बाद दशहरे का पावन त्यौहार शुरू हो जाता है, जो पूरे भारतवर्ष में बेहद ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। कहा जाता है कि अपने के दिन ही प्रभु श्री राम ने अहंकारी रावण का वध करके उसका वध किया था। साथ ही यह वही दिन है जिस दिन मां दुर्गा ने महिषासुर का भी वध किया था। विजयदशमी के दिन शमी के पेड़ की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है।
दुर्गा विसर्जन से जुड़े इन नियमों का रखें विशेष ख्याल
- नवमी तिथि के दिन का कभी भी देवी दुर्गा विसर्जन ना करें।
- दुर्गा विसर्जन के लिए मुहूर्त का विशेष ध्यान रखें और शुभ मुहूर्त में ही मां दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन करें।
- दुर्गा विसर्जन के दिन काले रंग के कपड़े पहनने से बचें।
- इसके अलावा दुर्गा विसर्जन के दौरान खाने पीने का सामान, श्रृंगार का सामान, और अन्य चीजें मां दुर्गा के साथ विसर्जित की जाती है। इसके पीछे की मान्यता है कि ताकि मां दुर्गा को देवलोक तक जाने में कोई कठिनाई का सामना ना करना पड़े इसलिए हम उनके साथ जरूरत की चीजें भी भेज देते हैं।
नवरात्रि में सपने में मां दुर्गा के अलग अवतार देखने का अर्थ
देवी दुर्गा
यदि नवरात्रों के दौरान आप सपने में देवी दुर्गा को देखते हैं तो इससे बेहद शुभ माना जाता है। यदि आप नवरात्रों के दौरान देवी को लाल कपड़ों में मुस्कुराते हुए देखते हैं तो समझ लीजिए कि आपके जीवन में कुछ अच्छा होने वाला है। यह आपके जीवन के किसी भी क्षेत्र के लिए शुभ साबित हो सकता है। अविवाहित लोगों की शादी हो सकती है। वहीं विवाहित लोगों को संतान सुख प्राप्त हो सकता है। इसके अलावा जो लोग बेरोजगार हैं या नौकरी की तलाश में है उन्हें भी इस संदर्भ में शुभ समाचार प्राप्त हो सकता है।
वहीं दूसरी तरफ यदि आप सपने में मां दुर्गा को देखते हैं जिसमें उनका शेर दहाड़ रहा होता है तो आपका यह सपना कुछ समस्याओं का संकेत देता है। ऐसी स्थिति में उपाय के रूप में आपको देवी दुर्गा की पूजा करके उन्हें प्रसन्न करने की सलाह दी जाती है ताकि आपके जीवन में जो कोई भी समस्या आने वाली हो उसका समय रहते समाधान किया जा सके।
देवी लक्ष्मी
स्वप्न शास्त्र में देवी लक्ष्मी को भी विशेष स्थान दिया गया है। यदि नवरात्रों के दौरान आपको सपने में देवी लक्ष्मी नजर आए तो यह सुख समृद्धि का प्रतीक माना गया है। कहा जाता है देवी लक्ष्मी को स्वप्न में देखना धन लाभ के निशानी होती है। इतना ही नहीं यदि अगर आप व्यवसाय करते हैं तो आपको इस संदर्भ में लाभ मिलता है।
देवी भगवती
स्वप्न विज्ञान के अनुसार यदि आपको सपने में देवी भगवती शेर पर सवार नजर आए तो यह एक शुभ संकेत माना गया है। इसका मतलब यह होता है कि आपके जीवन में चल रहा बुरा समय अब खत्म होने वाला है, आपका समय जल्द बदलेगा और आपके जीवन में सब कुछ शानदार होने वाला है।
हालांकि इसके विपरीत यदि आपको सपने में केवल शेर या बाघ नजर आता है जो आप पर दहाड़ रहा हो तो इसे शुभ नहीं माना जाता है। ऐसी स्थिति में आपको दुर्गा चालीसा या दुर्गा सप्तशती का पाठ करना फलदाई साबित हो सकता है क्योंकि शेर और बाघ मां दुर्गा के वाहन माने गए हैं ऐसे में क्रोध में उन्हें देखना भला कैसे शुभ हो सकता है।
माता पार्वती
नवरात्रि के दौरान सपने में मां पार्वती को देखना भी बेहद शुभ माना जाता है। शास्त्र के अनुसार सपने में मां पार्वती को देखने का अर्थ होता है कि आपको अपने प्रयास में सफलता मिलने वाली है। इसके अलावा यदि आप शिक्षा या व्यवसाय के क्षेत्र से जुड़े हैं तो उसमें भी आप को प्रगति हासिल होने की संभावना बढ़ जाती है।