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Party leader पार्टी नेता, Leaders नायक Location:-Sehore, Madhya Pradesh, India

हमारी मातृभाषा ही हमारा गौरव है

21 Feb 2018

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हमारी मातृभाषा ही हमारा गौरव है

 

 

आज अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस है। भाषा हमें जोड़ती है, तो मातृभाषा हमारी पहचान है। हम प्रदेशवासी मातृभाषा के सन्दर्भ में गौरवान्वित हैं, क्योंकि देश के इस ह्रदय प्रदेश को अब "लघु भारत" कहा जाने लगा है। यहाँ विभिन्न बोली-भाषा, संस्कृति, परम्पराओं, पर्वों, मान्यताओं में श्रध्दा रखने वाले प्रेम से रहते हैं। ये विविधता ही मध्यप्रदेश की वास्तविक ताकत है। मेरा तो प्रदेश के कोने-कोने में जाकर सभी से मिलने-जुलने का क्रम बना रहता है और मैंने इस दौरान कई बार महसूस किया है कि एक-दूसरे के प्रति सम्मान का भाव ही विकास की मजबूत आधारशिला है। 

जिस प्रकार हम सभी में नर्मदा मैया, धरती और गाय के प्रति माँ का भाव है, वही स्थान मातृभाषा का भी है। मातृभाषा वह बोली है, जो हमें बुजुर्गों से विरासत में मिलती है और हम भावी पीढ़ी को दे जाते हैं। यही सबसे पहले हमारी जुबान बनती है और हम कहीं भी चले जाएं, जीवन में कितनी भी ऊँचाई हासिल कर लें, पर इसे कभी भूल नहीं सकते। हमारे ऋषि-मुनियों ने भी कहा है-

 

इला सरस्वती मही तिस्त्रो देवीर्मयोभुवः।

 बर्हिः सिदन्त्वस्रिधः।।

 

अर्थात मातृभूमि, मातृसंस्कृति व मातृभाषा तीन देवियां हैं, इनकी उपासना करनी चाहिए, ये सुखदात्री हैं। 

हमें अपने प्रयत्नों से इन तीनों के संरक्षण और उन्नति का प्रयास करते रहना चाहिए, इसी से हमारे गौरव में वृद्धि होगी। हजारों वर्षों से जिस संस्कृति ने भारत को विश्व में अग्रणी और प्रासंगिक बनाए रखा है, उसकी जड़ों में हमारे वही संस्कार हैं, जो मातृभाषा से पल्लवित होते हैं। मातृभाषा की जड़ें कितनी गहरी हैं, इसका अंदाज़ा हम इसी से लगा सकते हैं कि हजारों वर्षों के इतिहास में विश्वभर से कई योद्धा, विद्वान, व्यवसायी यहाँ आए, लेकिन हमारी मातृभाषा अक्षुण्ण रही। जबकि हमने उनके साथ आई संस्कृति, बोली-भाषा, पहनावे को खुले दिल से स्वीकार किया। 

दरअसल मातृभाषा के साथ हजारों वर्षों के संस्कार, पर्व, परम्पराएं, लोकाचार, लोककला जैसे उन मूल्यों की विरासत होती है, जो हमारे जीवन का आधार हैं। मातृभाषा से ही हमें अपनी पहचान, खुशियाँ, सामाजिक समरसता, चुनौतियों से निपटने का कौशल और आगे बढ़ने की ऊर्जा मिलती रही है। हमें अपनी मातृभाषा की रक्षा उसी तरह करनी चाहिए, जिस तरह हम अपने राष्ट्र के सम्मान और स्वाभिमान पर तनिक भी आंच नहीं आने देते हैं।

आज अवसर है अपनी माँ समान मातृभाषा के प्रति निष्ठा बनाए रखने के लिए संकल्प लेने का, साथ ही अन्य मातृभाषाओं के प्रति सम्मान व्यक्त करने का। भाषा और बोली ही हमें एकसूत्र में पिरोती है, इसलिए देश को एकता के बंधन में पिरोकर रखना है तो मातृभाषा के प्रति वही भाव रखना होगा, जैसा हमारे पूर्वजों ने हमें विरासत में सौंपा है।

आपका 

शिवराज सिंह चौहान