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जहां बेटियां होंगी, वहां शुभ और मंगल होगा  

24 Jan 2019

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जहां बेटियां होंगी, वहां शुभ और मंगल होगा  

 

मेरी बेटियों, प्रिय भांजियों, राष्ट्रीय बालिका दिवस पर तुम्हें ढेरों शुभकामनाएं! मेरी नजर में बेटियों के लिए कोई एक दिन नहीं, बल्कि हर दिन है। बेटियां ही तो दिन, महीने, साल को खास बनाती हैं। मेरे लिए बेटी का अर्थ हर्ष, उत्सव, उमंग, उल्लास और अनंत खुशियों का भंडार है। मेरा यह मानना है कि जहां भी बेटियां रहती हैं, वहां ऐसी सकारात्मक ऊर्जा स्थायी हो जाती है, जिससे सब कुछ शुभ-शुभ होने लगता है। बेटियां देवी का अवतार मानी जाती हैं, फिर भी कुछ नासमझ लोगों को यह बोझ लगती हैं। यह न हों, तो यह सृष्टि नहीं चल सकती है। किसी ने क्या खूब लिखा है –

 

“जरूरी नहीं है कि रोशनी चिरागों से ही हो,

बेटियां भी घर में उजाला करती हैं।“

 

हर क्षेत्र में बेटियां अपनी सफलता का परचम फहरा रही हैं। खेल के मैदान में अपना जौहर दिखा रही हैं, तो शिक्षा के क्षेत्र में देश का गौरव बढ़ा रही हैं। घर की देखभाल से लेकर फाइटर प्लेन तक उड़ा रही हैं। जब भी इनकी सफलता की खबरें पढ़ता हूं, तो मेरा सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है।

 

गर्व, सम्मान और सृष्टि का सबसे मजबूत आधार होने के बावजूद जब बेटियों को कोख में मारे जाने की खबर पढ़ता हूं, तो सिर शर्म से झुक जाता है। स्वयं से घृणा होती है कि क्या हम उसी समाज का हिस्सा हैं, जो भ्रूण हत्या के बावजूद सभ्य कहलाता है। ऐसा तो पशु भी नहीं करते हैं, जिन्हें हम विवेकशील नहीं मानते हैं, तो क्या हम पशुओं से भी गये गुजरे हैं।

 

हाल ही में आई वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (WEF) की रिपोर्ट के अनुसार: 

भारत जेंडर गैप इंडेक्स में 108 वें स्थान पर है

इकोनॉमिक अपॉर्च्युनिटी और पार्टिसिपेशन सब इन्डेक्स में हमारा देश 149 देशों में से 142 वें स्थान पर है

जेंडर गैप को चार प्रमुख वर्गों में मापा गया - आर्थिक अवसर, राजनीतिक सशक्तिकरण, एजुकेशनल अटेनमेंट और हेल्थ एवं सरवाइवल 

भारत में सुधार के लिए सीनियर और प्रोफेशनल रोल में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की जरूरत है 

भारत पिछले एक दशक में हेल्थ और सरवाइवल की रैंकिंग में दुनिया में सबसे निचले स्तर पर है (तीसरे स्थान) 

मैं जब 2005 में पहली बार मुख्यमंत्री बना तो मैंने लिंग अनुपात को सुधारने के लिए लाडली लक्ष्मी, मुख्यमंत्री विवाह जैसी योजनाएं बनाकर भ्रूण हत्या जैसे कलंक से प्रदेश को मुक्त करने का प्रयास किया। सरकार और समाज के प्रयासों से स्थिति सुधरने लगी। सेंसस 2001 के अनुसार भारत में सेक्स रेशियो 933 था, जो 2011 में बढ़कर 943 हो गया। वहीं मध्यप्रदेश में इस दौरान यह आंकड़ा 919 से बढ़कर 931 हो गया है। लिंग अनुपात और महिलाओं को समान अधिकार की समस्या भारत में ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में है। यह अलग बात है कि देशकाल और परिस्थितियों के अनुसार इस समस्या का रूप विभिन्न देशों में अलग है। कहीं अवसरों में असमानता है, तो कहीं वेतन में विसंगतियां हैं, तो कहीं अधिकारों में कटौती की गई है। महिलाओं के जीवन में उजाला लाना है, तो महिला शक्ति को आर्थिक और राजनीतिक रूप से समर्थ बनाना होगा। इसलिए मैंने अपने मुख्यमंत्रित्वकाल में स्थानीय निकाय चुनाव और शिक्षक भर्ती में 50 प्रतिशत तथा पुलिस विभाग सहित अन्य सरकारी नौकरियों में 33 प्रतिशत आरक्षण देकर इनके सशक्तिकरण का प्रयास किया। हमारी बहन-बेटियों ने मुझे निराश भी नहीं किया। अपनी जिम्मेदारियों को इन्होंने इतनी सहजता से पूरा किया, मानो ये वर्षों से इस कार्य को करती आई हों। 

 

मेरा मानना है कि केवल सरकार के प्रयास से नहीं, बल्कि समाज की सहभागिता से ही लिंग अनुपात को बेहतर बनाने के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसी योजना और विभिन्न प्रयासों से लोगों का दृष्टिकोण बदलने लगा है। समाज और सरकार मिलकर लिंग अनुपात को बेहतर करने के लिए ईमानदार प्रयास करें, तभी इस अभिशाप से देश एवं प्रदेश को मुक्ति मिल सकती है। इस प्रयास को आंदोलन का रूप देने की आवश्यकता है, ताकि लिंग अनुपात की यह विषमता समाप्त की जा सके। 

 

मैं लोगों को जागृत करने के लिए एक ऐसे सामाजिक आंदोलन की शुरुआत करने जा रहा हूं, जिस अभियान के माध्यम से लोगों में जागरुकता फैले और वास्तविक परिवर्तन का आधार बनें। इस अभियान की विस्तृत जानकारी आपसे कुछ दिनों में साझा करूंगा। 

 

लोग कहते हैं कि “बेटे भाग्य से होते हैं, पर बेटियां सौभाग्य से होती हैं।” इसलिए आपसे आग्रह करता हूं कि सौभाग्यरूपी बेटियों के लिए सदैव अपने दरवाजे खुले रखिए। मेरी ओर से हर बेटी को स्नेह! सदैव सुखी रहो, आनंदित रहो। तुम आगे बढ़ो, तुम्हारा भविष्य उज्जवल हो, तुम्हारी राह में आने वाली हर बाधा दूर हो। बालिका दिवस पर अनंत शुभकामनाएं, आशीष!!

 

आपका शिवराज